Sunday, 14 January 2018

In the name of "LOVE"


We all are feeding our fears in the name of "LOVE"

- A mother has fear to send her kid outside, she is feeding her fear and calling it "Love".
- A father is tensed about the future of their kid, he is feeding his fear and calling it "Love".
- A sisters wants their siblings in a certain way, feeding her fear and calling it "Love".
- A brother is limiting his own sister in the society, feeding his fear and calling it "Love".
- The grandparents are feeding the culture of 70's to their grandchild, feeding their own fear and calling it "Love".
- A couple not happy together, still together, feeding their own fear and calling it "Love".

- The truth is directly or indirectly, all of us are doing everything for ourselves and labelling it as "Love".

Now, you may think "Love is nowhere". It is when you are free or freed.



Friday, 12 January 2018

“Q & As” of immaturity


Q. Few friends say; you haven’t seen the world
Others say you don’t know how the people are?
Some say you are silly enough to be fooled
While immature is the only word ruled..?

A. Sorry to say but i have my own special world
Where I walk through the lane of mosses curled
Enchanted by the song of birds..!
Not afraid of the places or faces new
Variety of hands together, form a gentle crew
Giving friendship a royal hue..!

Q. Often we say humanity is lost
Repeating the same as precautionary cost
Defining maturity with a secretive pause
Don’t try to be a santa claus?


A. Sorry again! as i don’t agree
We have inherited humanity for free
Stop pretending the fake glee
Human for human, just agree!

Q. They belong to the other cast
Creed, gender and habits contrast
The food habits and dresses varied
In different languages they can cheat?

 A. With a smile and happy heart i accept people
        Make friends for lifelong
Out of the boundaries of state or country they belong
My thoughts and intentions are very clear
Nothing to hide nor have fear.
Rumor and gossips; what make us weak
As you sow, so shall you reap
The line i strongly believe..!!

Thursday, 11 January 2018

कुछ चंद लोग


Hey guys ! welcome to the blog

About: This writing  is about all of us. We all have best friends, right ! Apart from these best friends
all of us have mediocre, neither the best friends nor the friends. This writing is from perspective of a human being (मैं) and addressing the situation of all the mediocre in our life.

मेरा - human being 


वो कुछ चंद लोग जो खुद को मेरा दोस्त कहते हैं 

अगर एक दूसरे से जलन रखने को
तुम  दोस्ती कहते हो , तो तुम मेरे दोस्त नहीं 

अगर कुछ बातें जान कर
समय आने पर उनका इस्तेमाल करना जानते हो 
और खुद को मेरा दोस्त कहते हो तो तुम मेरे दोस्त नहीं 

अगर मेरी ही पीठ पीछे ताने बाने बुनते हो 
और खुद को मेरा दोस्त कहते हो
तो तुम मेरे दोस्त नहीं 

अगर "Being practical" के नाम पर
समय आने पर खिसक लेते हो 
और दोस्ती के दावे करते हो,
तो प्यारे, तुम मेरे दोस्त नहीं 

अगर, मेरी तारीफें सुन कर
कानों मे अंगुलियां  डाल लेते हो  
और खुद को मेरा दोस्त कहते हो,
तो तुम मेरे दोस्त नहीं 

वो कुछ चंद लोग, लोग ही रहे तो बेहतर 
क्यूंकि दोस्ती का ज़ायका तो हम ले चुके हैं 
ऐसा स्वाद तो न था 















Wednesday, 10 January 2018

मतभेद


Here is the another writing. Its about today's most common issue, difference of opinion. Have an opinion and be okay with "difference of opinion".


आओ बेमतलब के ये किस्से आज ख़तम करें
तुम भी हमको माफ़ करो और हम भी तुमको माफ़ करें

दो पल की ही तो है तो है ये इक छोटी सी ज़िंदगानी
क्यूँ ढोते फिरते हो फिर रंजिशों की ये अनगिनत कहानी

कुछ कमियां हम में हैं तो
कुछ कमियां तुम में रही ही होंगी

सही कहा है, इक म्यान में दो तलवारे भला कैसे रहें
म्यान को थोड़ा बड़ा करो, जिससे दोनों का भला रहे

ज्यादा नहीं तो  थोड़ा  ही, कभी तुम भी मैं बन जाना
मैं भी तुम बन जाऊँगी क्यूंकि ज़रूरी है ये भेद मिटाना

बैर नहीं है ये आपस का
मतभेद है सिर्फ विचारों का

ग़र ये सच्चाई देख सको तो
उपाय भी इसका तुम पाओगे

कठिन नहीं है मतभेदों को भुला कर
आगे बढ़ जाना

बस तुम भी थोड़ा झुक जाओ
और हम भी थोड़ा झुक जाएँ 







Sunday, 7 January 2018

धूप की सेंक

मन करता है की लम्बी छुट्टियां  लूँ।
घर जाकर....
धूप की सेंक में मूंगफलियां खाऊं....
फीकी चाय को गुड़ के ढेले के साथ चुस्कियां ले ले कर पिऊ....
कुछ बातों की हवाबाजियां मारुं.... 
कुछ आते  जाते बंदरो को चिढ़ाऊ,  उनके मुझ पर गुर्राने पर मम्मी मम्मी चिल्लाऊं....
स्कूल से वापस आते बच्चों को देख, मन  ही मन इतराऊं....

पर अब ना तो वो लम्बी छुट्टिया मिलती हैं
 ना धूप की प्यारी सेंक
जमा सा दिया है इन चाहरदिवारियों ने, अंदर से और बाहर से
 इस ठंड मे, काम काज की गर्मी भी ठंडी मालूम होती है

बस यही सोचता रहता हूँ
कि काश लम्बी छुट्टियां लूँ और धूप की सेंक ..


Friday, 5 January 2018

कुछ पल ज़िन्दगी के


कुछ पल ज़िन्दगी के 
मेरे बचपन वाले लौटा दो 
भरी दोपहरी का 
वो सुनहरा रंग फैला दो. . 
अजीब कश्मक़श सी 
बोझिल ज़िन्दगी में 
वो सावन का ऊँचा झूला झुला दो 
पैसों से चलने वाली इस दुनिया में 
मुझे वो गुल्लक वाला अमीर बना दो. .!!

कुछ पल ज़िन्दगी के 
मेरे बचपन वाले लौटा दो 
भीड़ भरी इन सड़कों पर 
वो गली क्रिकेट की पिच बना दो 
होमवर्क ख़त्म करने की 
वो सबसे बड़ी टेंशन दिला दो 
रोबोटिक्स की इस बेजान दुनिया में 
सबका वो बचपन वाला दिल बना दो...!!

The Perspective of Universe

If GOD gave you haters, be grateful,  GOD has given you WATCHERS.    How many people are out there who crave such attention.  If GOD gave yo...