अक्सर खबरों मे सुनने मे आता है की
... आम लोगो मे रोष
.... आम लोगो मे भगदड
फलाना फलाना ........
ये न्यूज़ चैनल वाले आम लोगो को इतना आम बना बना देते हैं कि मानो वो कोई बिलुप्त प्रजातियां हो.
तो आइयें आज बात करते हैं इन so called आम से लोगो के बारे मे ।
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- मेरे तड़के आँख खुलने से पहले, कई घरों का काम निपटाने के बाद, जो औरत मेरे घर की डोर बेल बजाती है
, वो बातूनी सी मेरे घर की बाई, कोई आम तो नहीं। दिन भर की थकान के बाद भी "मैडम जी ये", "मैडम जी वो" करना नहीं भूलती, तो वो कुछ ख़ास ही होगी।
- मेरे दफ्तर का वो peon, मज़ाल की सफाई करते वक़्त वो एक भी तिनका छोड़ दे. जब वो काम करता है न !तो ऐसा लगता है, कि मानो उसे अपने काम से कितना प्यार हो. अपने काम से प्यार करने वाला, मेरे ऑफिस का वो peon कोई आम तो नहीं लगता। राजगद्दियों पर बैठे तानाशाहों को काम के प्रति प्यार और वफादारी सिखा जाता हैं | तो वो कुछ ख़ास ही होगा।
- अब दूर कहाँ जाएँ, अपने घर की माँओ (mothers) को ही ले लीजिये। खुद से पहले दुसरो को रखने का हुनर सबके पास तो नहीं, तो फिर ये दुर्लभ हुनर जिसके पास होगा वो कोई आम तो नहीं, यक़ीनन कुछ ख़ास ही हैं।
- पेट भरने के लिए तो सभी नौकरी करते हैं, उसमे क्या अलग है. मेरा ही वो दोस्त जो दफ्तर मे पूरा दिन काम करने के बाद, कुछ बच्चों को ट्यूशन देने जाता है, समाज के एक हिस्से को शिक्षित करना, कोई आम बात तो नहीं, कुछ ख़ास ही है।
ऐसे ही कई ख़ास लोग हैं जो मेरे आस पास हैं.
रैंप पर चलने वाली मॉडल्स, संसद मे लड़ते नेता और कंट्रोवर्सीज मे छाए रहने वाले चेहरे ही ख़ास नहीं हैं,
मेरे घर की बाई, मेरे ऑफिस का peon, हमारे घर की मायें और आपका ही कोई दोस्त,
ये खुद जानते है की वो कितने ख़ास हैं।