मृदुल भावों से निकल पड़ी देखो ये कैसी टोली ?
कहीं पराग कहीं रस लिए, करती हँसी ठिठोली
प्राचीनतम यह मित्र हमारी, अद्वितीय सभ्यता संजोती
छोटी पर अतुल्य कीट यह, त्याग और परिश्रम सिखाती
नन्हें षट्कोणीय कक्षों में, सामाजिकता का पाठ पढ़ाती।
शहद, मोम, प्रोपॉलिस, रॉयल जेली की सौगात देकर भी
सर्वरोगहर औषधि की जननी तू ही कहलाई
हुई ना तुष्टि लोलुप मानुष को
हाय ! ये कैसी विडंबना छाई
lovely..ati uttam
ReplyDeleteBahut acche..
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