अचंभित से सोचते हैं हम, उन कविताओं, उन कहानियों के बारे मे ।
जो हमें बचपन मे सिखाई गयी ।।
जो तब हमें ना ही समझ आयी और ना ही प्रयोग मे आयी ।
अगर आज सिखाई जाती वो कवितायेँ, वो कहानियां ।।
तो आज ये हालत ना होते ।।
दूसरे के रंग रूप पर टिप्पड़ियां करते रहना और उनके चरित्र का आंकलन करते रहना ।
सूचक है आपके गिरते हुए आत्मविश्वास का ।।
ये दुनियां ना ही अच्छी है और ना ही बुरी है ।
ये सब तो नज़रिये का खेल है ।।
सच ना होता अगर ये ।
तो अमीर को देखने पर गरीब और गरीब को देखने पर अमीर क्यूँ महसूस होता ।।
तो अमीर को देखने पर गरीब और गरीब को देखने पर अमीर क्यूँ महसूस होता ।।
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